Wednesday, April 11, 2012

ऐ यार तुझसे अब क्या उम्मीद करूं
तूने तो मेरी ज़िन्दगी का तमाशा बना दिया

अपनी इन हसरतों को कहाँ छुपाया करूं
तूने इस आदमज़ात को खुदा समझा किया

लाख कोशिशें की, तेरे सितम पर बद्दुआ दिया करें
हमारे दिल को हमारी ये दुआ कबूल नहीं

किन्हें सताने चले थे हम?
उनकी इक आह पर हमें रोना आया

उस तस्वीर को हमने याद क्यूँ किया ?
जिसे भुलाने पर हमें सुकून मिला किया

सर झुकाकर सच्ची बात कही कि गलती हमारी थी
या, सच्ची बात कही - यही गलती हमारी थी?

हमें इस दर्द का कभी एहसास न होता,
काश इस रिश्ते की कभी आगाज़ न होती.

२०/०१/२००५

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