Monday, October 2, 2023

दौर

वो सीने से क़िताब लगा मादक शर्म का दौर कुछ और था,
ये बे आबरू बे गैरत मादक मस्ती का दौर कुछ और है ।

मद्धम चरागों से रौशन सिमटी सकुचाई सुंदरी का दौर कुछ और था,
डांस बार की चमक रौशनी में छलकते तनों की बेहोशी का दौर कुछ और है।

लज्जा वसन में छुपे पीन पयोधर का दौर कुछ और था।
कृत्रिम उन्नत अंग से उग्र भंगिमा का दौर कुछ और है।

झुकती शर्मीली नजरों से की गई सहमति का दौर कुछ और था,
ये बाहों में भरकर आर्द्र ऊष्म चुम्बन से स्वीकृति का दौर कुछ और है।

Thursday, June 23, 2022

ईश्वर, मैँ नास्तिक ही होता


नास्तिक हो जाने से अच्छा होता,

मैँ नास्तिक ही होता।


तुझे क्या पता, ईश्वर,

मानव मन की पीड़ा

और उस अहसास का

जो एक आदमी के

संपूर्ण जीवन मेँ

संचित धारणाओँ के

धराशायी होने पर

उसके अंतर मेँ पैदा होता है।


दरकता हुआ हृदय कराहता है-

मैँ नास्तिक ही होता।


जब तू करता है

पक्षपात

परीक्षा के बहाने

और सिर उठाने का

नहीँ देता एक भी मौका

अंतिम साँस तक...


झुका सिर और जुड़े हाथ से अच्छा -

मैँ नास्तिक ही होता।


अपनी डोर

हाथ मेँ तेरे देकर

निर्भय मानव

कर्मभूमि मेँ

बहाता रहे पसीना

और तेरे निर्णय के कारण

ढोता रहे

असफलता का बोझ,


पराजित हतोत्साहित चीखता तब-

मैँ नास्तिक ही होता।


होगी तेरी एक अद्भुत दुनियाँ

जीवन के उस पार

लेकिन जीवन तो मेरा है

जहाँ है कुछ इच्छाएँ

और कुछ भावनाएँ

जिनका पूर्ण होना

आवश्यक है

मृत्यु से पहले ही

अन्यथा जीवन ही क्योँ है.


आस्थाओँ के अस्त होने से अच्छा -

मैँ नास्तिक ही होता।


मेरी कलम रुक जाती है

मेरी कलम रुक जाती है

जब

कोई कहता है

भूख लगी है

पैसे दे दो...



मेरी कलम रुक जाती है

जब

मैं देखता हूँ

छोटे से बच्चे को

चाय की दूकान पे

काम करते...



मेरी कलम रुक जाती है

जब

कोई सिमटी सिकुडी लड़की

किनारे से गुजरती है

सर झुका कर

भीड़ से बचकर...



मेरी कलम रुक जाती है

जब

कोई रिक्शा वाला

दस के बदले पाँच पाकर

खरे होकर

देखता है चमकते सूट को...



मेरी कलम रुक जाती है

जब

एक पुलिस वाला

सलाम करता है

किसी खड़ी वाले को...



मेरी कलम रुक जाती है

जब

अखबार में छपती है

हत्या, लूट, बलात्कार की

युद्ध, राजनीति, उठा-पटक की

रोज-रोज खबरे एक-सी...



मेरी कलम रुक जाती है

जब

लगता है

शब्दों के बाण

कविता का मलहम

या गीत के सरगम

बदल नहीं सकते

तुझे, मुझे या उन्हें

न आत्मा, न परमात्मा

न भूत को, न भविष्य को...

Sunday, September 13, 2020

Last days & U

Itz the last days of my life
I want you to hold me
I wanna be with you to fly

Itz the last days of my life
I want you to tear my heart
I wanna be with you to cry

Itz the last days of my life
I want you to listen my mum
I wanna be with you and try

Itz the last days of my life
I loved you and I liked you 
I wanna be with you or die..

Saturday, August 1, 2020

सूक्ष्म कथा -९ (गलतफहमी

सूक्ष्म कथा -९ (गलतफहमी)
पास ही के घर में विधवा धनु अपनी बेटी के साथ रहने आई। दोनों परिवारों में हेम-क्षेम बढ़ने लगा और पुराने पति-पत्नी में तकरार बढ़ने लगी।
आज वर्षों बाद पति पत्नी पृथक् एकाकी जीवन बिता रहे हैं।
पति को न्योता आया है, धनु की बेटी का विवाह है, मामा की हैसियत से कन्यादान करने का आग्रह है।

सूक्ष्म कथा -८ (अवसर)

सूक्ष्म कथा -८ (अवसर)
मिथिला में कोशी नदी के दोनों तरफ उपजाऊ जमीन पर हर साल बाढ़ आती थी। किसान बाढ़ से पहले धान की बुआई कर देते और बाढ़ के लौटने से पहले नाव में घूम कर पके धान की बालियों को काट लेते।

सूक्ष्म कथा -७ (बहू-बेटी)

सूक्ष्म कथा -७ (बहू-बेटी)

होली में घर आए बच्चे लाकडाउन में परिवार के साथ फंस गए।  मनु की मां भी बहुत खुश हैं कि इसी बहाने बेटे बहू के साथ कुछ दिन रहेगी। उसे बस यही चिंता सता रही है कि उसकी बेटी तनु अपने ससुराल में इतने दिन कैसे काटेगी।