Thursday, June 23, 2022

ईश्वर, मैँ नास्तिक ही होता


नास्तिक हो जाने से अच्छा होता,

मैँ नास्तिक ही होता।


तुझे क्या पता, ईश्वर,

मानव मन की पीड़ा

और उस अहसास का

जो एक आदमी के

संपूर्ण जीवन मेँ

संचित धारणाओँ के

धराशायी होने पर

उसके अंतर मेँ पैदा होता है।


दरकता हुआ हृदय कराहता है-

मैँ नास्तिक ही होता।


जब तू करता है

पक्षपात

परीक्षा के बहाने

और सिर उठाने का

नहीँ देता एक भी मौका

अंतिम साँस तक...


झुका सिर और जुड़े हाथ से अच्छा -

मैँ नास्तिक ही होता।


अपनी डोर

हाथ मेँ तेरे देकर

निर्भय मानव

कर्मभूमि मेँ

बहाता रहे पसीना

और तेरे निर्णय के कारण

ढोता रहे

असफलता का बोझ,


पराजित हतोत्साहित चीखता तब-

मैँ नास्तिक ही होता।


होगी तेरी एक अद्भुत दुनियाँ

जीवन के उस पार

लेकिन जीवन तो मेरा है

जहाँ है कुछ इच्छाएँ

और कुछ भावनाएँ

जिनका पूर्ण होना

आवश्यक है

मृत्यु से पहले ही

अन्यथा जीवन ही क्योँ है.


आस्थाओँ के अस्त होने से अच्छा -

मैँ नास्तिक ही होता।


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