वो सीने से क़िताब लगा मादक शर्म का दौर कुछ और था,
ये बे आबरू बे गैरत मादक मस्ती का दौर कुछ और है ।
मद्धम चरागों से रौशन सिमटी सकुचाई सुंदरी का दौर कुछ और था,
डांस बार की चमक रौशनी में छलकते तनों की बेहोशी का दौर कुछ और है।
लज्जा वसन में छुपे पीन पयोधर का दौर कुछ और था।
कृत्रिम उन्नत अंग से उग्र भंगिमा का दौर कुछ और है।
झुकती शर्मीली नजरों से की गई सहमति का दौर कुछ और था,
ये बाहों में भरकर आर्द्र ऊष्म चुम्बन से स्वीकृति का दौर कुछ और है।
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