Friday, December 4, 2009

कांटे

हम कांटे हैं / फूलों के रक्षक / भक्षक नहीं / बचाते हैं उन्हें / उन दुष्ट हाथों से / जो बढ़ते हैं / तोड़ देने को / और मुरझा देने को उन्हें / या / फ़ेंक देने को उन्हें।

हाँ , ये सही है / कि बदवक्त / कुछ झोंके आते हैं / और , हमसे उलझकर / फूलों की कलियाँ / या फिर / नाजुक पंखुड़ियाँ / हो जाती हैं नष्ट ।

किंतु ये झोंके / होते हैं / समसामयिक पवनों के / और जिनके सामने / हम भी होते हैं बेबस / फूलों की तरह ।

एक बार फिर / कहता हूँ मैं / हम कांटे हैं / फूलों के रक्षक, भक्षक नहीं।

-dhairya / धैर्य -

3 comments:

Anonymous said...

Bahut sundar.

kshama said...

Saral sundar bhav..snehil swagat hai!

V Vivek said...

Bahut sundar! Badhai ho!
Mere blog par aapka swagat hai
www.alahindipoems.blogspot.com