Sunday, June 13, 2010

यादें

ये यादें क्यूँ आती हैं बार बार
जब कभी चाहता हूँ मैं तन्हाई के कुछ पल समेट
साकार करना अपना सपना.

ये यादें क्यूँ आती हैं बार बार - उभर सामने,
जब कभी चाहता हूँ मैं, अतीत के अन्धकार को खो
भविष्य को रौशन करना.

ये यादें क्यूँ खो जाती हैं तब,
जब कभी चाहता हूँ मैं, जीवन के नीरस सफ़र में
मीठी मुलाकातें ताजा करना.

ये यादें क्यूँ न देती हैं साथ - पास आकर मेरे,
जब कभी चाहता हूँ मैं, बचपन के सुहाने पलों से
कुछ हसीं लम्हें चुरा लेना.

ये यादें क्यूँ देती हैं दगा,
जब कभी चाहता हूँ मैं, यादों को पास बुलाकर,
इन्हीं यादों में खो जाना.

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